उम्मीदों से भरी ये जिंदगी
इधर युवा दर्शक फिल्म की सफलता में एक बड़ा फैक्टर बनते जा रहे हैं। खास तौर से दोस्त और दोस्ती की कहानी इन युवा दर्शकों को खूब पसंद आ रही है। फरहान अख्तर तो दोस्ताना कहानियों पर कुछ ज्यादा ही मुग्ध दिखते हैं। उनकी पिछली सारी फिल्मों में दोस्ताना बातें कहीं-न-कहीं मौजूद थीं। इससे हटकर उनके बैनर ने डॉन (शाहरुख खान अभिनीत), हनीमून ट्रैवल्स, लक बाई चांस, कार्तिक कॉलिंग कार्तिक जैसे जब भी कुछ नये प्रयोग किये, उन्हें कुछ ज्यादा उत्साहजनक परिणाम नहीं मिला। अब उनका बैनर भी यह मानने लगा है कि युवा वर्ग के दोस्ताना व्यवहार की कहानी वह ज्यादा अच्छी तरह से हैंडल कर सकते हैं।
उनकी दो सफल फिल्में दिल चाहता है और रॉक-ऑन इसका ज्वलंत उदाहरण है। उसी ट्रेंड पर चलते हुए फरहान अख्तर और उनकी बहन निर्देशक जोया अख्तर ने अपनी ताजा रिलीज फिल्म जिंदगी न मिलेगी दोबारा को भी उसी ट्रैक पर दौड़ाया है। देश के साथ-साथ स्पेन ओर इजिप्ट के खूबसूरत लोकेशन पर फिल्माई गई यह फिल्म तीन ऐसे दोस्तों का हाल बयां करती है, जो सड़क के रास्ते एक लंबे सफर पर निकलते हैं। कबीर (अभय देओल) की नताशा (कल्कि) से मंगनी हो चुकी है। कबीर चाहता है कि वह अपने दोस्तों के साथ स्पेन में बैचलर पार्टी करे। वह अपने स्कूल के दिनों के दो जिगरी दोस्त इमरान (फरहान अख्तर ) और अजरुन (हृतिक रोशन) को इसका निमंत्रण देता है। लेकिन अजरुन व्यस्तता के चलते इस बैचलर पार्टी में शरीक होने से इनकार कर देता है। तब कबीर और इमरान इमोशनल ब्लैकमेल का सहारा लेकर अर्जुन को तैयार कर लेते हैं। इसके बाद तीनों निकल पड़ते हैं अपने ड्रीम हॉलीडे पर। इस दौरान तीनो रोमांचक खेल का भरपूर लुत्फ उठाते हैं। मगर यह रोमांच कई पेचीदा मोड़ ला देता है।
जोया अख्तर इसकी कहानी के कुछ अहम तार को छेड़ना नहीं चाहती। उनके मुताबिक फिल्म के ये कुछ ऐसे दिलचस्प पहलू हैं, जो फिल्म देखते समय ही सामने आएं तो सिने प्रेमियों को ज्यादा मजा आएगा। जोया कहती हैं, ‘यह उम्मीद और उल्लास की फिल्म है। हमने फिर यह बताने की कोशिश की है कि जिंदगी बहुत हसीन है। अचानक आई कई विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए भी आप जिंदगी का मजा ले सकते हैं। यह यंग जेनरेशन की कहानी है, पर इसका मजा पूरा परिवार लेगा।’ जहां तक ट्रेड पंडितों का सवाल है, वे इसे इस साल की एक बड़ी फिल्म मान रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण है फिल्म की स्टारकास्ट।
हृतिक और कैटरीना की मौजूदगी ने इसे अनायास ही एक बड़ी फिल्म बना दिया है। फरहान, अभय और कल्कि का भी अपना स्टारडम है। 50 करोड़ में बनी इस फिल्म को पूरे देश में 700 से ज्यादा प्रिंट के साथ जारी किया गया है। ट्रेड विश्लेषक आमोद मेहरा कहते हैं, ‘वीकएंड के तीन दिन 90 प्रतिशत का व्यवसाय कर यह फिल्म हिट की श्रेणी में आ जाएगी। और यदि हृतिक का जादू ठीक-ठाक ढंग से चल गया, तो इसे भी इस साल की एक बडी हिट फिल्म माना जाएगा। अब देखना यह है कि परदे के बाहर यह कितना जीवंत रंग दिखाती है, फिल्म से जुड़े सभी लोगों की उम्मीदों पर यह कितनी खरी उतरती है।
फिल्म में मेरा रोल बड़ा नहीं है: कल्कि
इस फिल्म में आप क्या कर रही हैं?
मैं पहले ही बता देना चाहती हूं कि इसमें हीरोइन का रोल ज्यादा बड़ा नहीं है। मैं इसमें एक बड़े होटेलियर की बेटी का रोल कर रही हूं, जो अभय देओल की प्रेमिका है। तीन दोस्त जिस रोमांचक सफर में शामिल होते हैं, यह लड़की उसमें शामिल नहीं होती। अब तक के अपने फिल्म कॅरियर में मैंने इस तरह का रोल नहीं किया है।
देव डी. और शैतान के बाद आपने बड़ी फिल्मों की तरफ कदम बढ़ाया है?
यह सब बेहतर काम करने का नतीजा है। मैंने यह छोटा-सा रोल सिर्फ इसलिए करना मंजूर किया है, क्योंकि आगे चलकर मुझे बड़ी फिल्मों में बड़े रोल भी करने हैं।
क्या आपको यह रोल करने का कोई अफसोस है?
अफसोस कैसा, मात्र तीन-चार फिल्मों में काम करने के बाद मुझे यह मौका मिल गया।
कैसी है आपकी मैरिड लाइफ?
शादी के बाद से ही मैं और अनुराग अपने-अपने काम को लेकर इस कदर मशगूल हो गए हैं कि हम अपना घर भी ठीक से डेकोरेट नहीं कर पाए हैं। सच कहूं तो पति बनते ही अनुराग कुछ ज्यादा गंभीर हो गया है। अपने काम और मेरे प्रति उसका लगाव और बढ़ा है।
मैं तो अपने रोल से आश्वस्त हूं: हृतिक
काइट्स और गुजारिश की तुलना में यह फिल्म आपके लिए कितनी अलग है?
मैं मानता हूं कि मेरी पिछली इन दोनों फिल्मों ने दर्शकों का पूरा मनोरंजन नहीं किया, लेकिन इस फिल्म को लेकर मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं। मुझे पूरा यकीन है, यह सिर्फ युवाओं को ही नहीं हर वर्ग के दर्शकों को पसंद आएगी।
इस फिल्म ने आपकी मन:स्थिति को कितना प्रभावित किया?
असल में इसकी शूटिंग पूरी होते ही मेरा नजरिया काफी बदल गया था। मैने शिद्दत से इस बात को महसूस किया था कि हमें दोस्तों के साथ अपना व्यवहार बहुत नियंत्रित रखना चाहिए। इसके बाद मुझे इंडस्ट्री के अपने कुछ दोस्तों पर गर्व होने लगा।
क्या अब आप उस मन:स्थिति से उबर आए हैं?
पूरी तरह से नहीं। पर यह अपने आप होने लगा है। पर मैं इस जज्बे से उबरना नहीं चाहता हूं। इसकी वजह यह है कि हम जिस फील्ड में हैं, हमें कई तरह के मानसिक बदलाव का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सच्चे दोस्तों का सुझाव और सहयोग ही हमारे काम आता है।
दोस्तों की बात चली है, तो एक निहायत निजी सवाल कि क्या आप दोस्तों के साथ जाम भी टकराते हैं?
हां, कभी-कभी जब दोस्तों की पार्टी होती है, तो मैं जरूर पीता हूं। पर इसका मतलब यह नहीं है कि यह मेरे हर शाम की जरूरत है। वैसे भी शराब सिर्फ मस्ती की चीज है। इसके अलावा और कुछ नहीं। वैसे यह वजन बढ़ाने के काम नहीं आती है। बल्कि, इससे वजन घटता है। इससे मैं बीमार हो जाता हूं। इससे मेरा पूरा नियम बदल जाता है। इसलिए मैं परहेज कर एक-दो जाम छलकाता हूं।
युवा अब ज्यादा सेंसेटिव हो गए हैं: फरहान अख्तर
क्या इस फिल्म से भी आप दिल चाहता है जैसी उम्मीद जोड़ रहे हैं?
आप यह सवाल इसलिए पूछ रहे हैं, क्योंकि इस फिल्म की कहानी भी तीन दोस्तों के इर्द-गिर्द घूमती है। मगर दिल चाहता है और इस फिल्म के सब्जेक्ट में बड़ा अंतर है। जाहिर है इसे लेकर मेरी उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि इन वर्षों में हम युवा वर्ग की भावनाओं को लेकर और भी ज्यादा सेंसटिव हुए हैं।
निर्देशन के अलावा आप बहुत कुछ कर लेते हैं?
असल में मैं क्रिएटिविटी को एक सीमित दायरे में कैद नहीं रखना चाहता। इसलिए फिल्म के किसी भी क्षेत्र में अपना बेहतर देने के लिए मैं तैयार रहता हूं। सीधी-सी बात है, मैं अपने आपको एक संपूर्ण फिल्मकार बनाना चाहता हूं। जाहिर है इससे मेरी प्रतिभा का पूरा उपयोग संभव होता है।
आप और क्या-क्या बनना चाहते हैं?
मैंने अपना फिल्म कैरियर प्रसिद्घ छायाकार मनमोहन सिंह के सहायक के तौर पर शुरू किया था। इसके बाद सहायक के तौर पर थोड़ा बहुत काम करने के बाद मैंने दिल चाहता है के सब्जेक्ट पर काम किया।
आप रॉक-ऑन के बाद गायक भी बन बैठे?
ऐसी कोई बात नहीं है। रॉक-ऑन के गाने मेरी आवाज के साथ बहुत मेल खा रहे थे, मैंने गा दिया था। वे खूब पसंद भी किये गये। फिर भी मैंने अपने आपको कभी गायक नहीं समझा। इस फिल्म में भी मैंने हृतिक और अभय के साथ सिर्फ एक गाना गाया है। कोई जरूरी नहीं कि मैं गीत ही गाऊं।
अच्छा एक्टर कहलाना चाहता हूं: अभय देओल
इस फिल्म को युवा आकांक्षा और उल्लास की फिल्म कहा जा रहा है?
मेरे ख्याल से ये दोनों बातें कम या ज्यादा सभी के अंदर मौजूद रहती हैं। हां, यंग जनरेशन इससे कुछ ज्यादा ही लबरेज होती है। अब जैसे कि मुझे देख लीजिए, मैं फिलहाल अपनी इस फिल्म को लेकर कुछ ऐसा सोच रहा हूं। शायद यह फिल्म मेरी उम्मीद पर उतनी खरी न उतरे, मगर जिस उत्साह के साथ हमने इस फिल्म में अपना योगदान दिया है, वह वाकई में उल्लास से भरा था।
आयशा के बाद अब क्या कहेंगे?
मेरी पिछली फिल्म आयशा ने मुझे बहुत हताश किया था। खैर, अब इस बारे में ज्यादा जिक्र करने का कोई मतलब नहीं है। पर जैसा कि मेरा ख्याल है, कोई फिल्म मेरी उम्मीदों पर भले ही खरा न उतरे, उस फिल्म में अपने परफारमेंस से मैं निजी तौर पर संतुष्ट होना चाहता हूं।
आपको मल्टीप्लेक्स हीरो क्यों कहा जाता है?
मैं अपने आपको सिर्फ अच्छा एक्टर साबित करना चाहता हूं। वैसे भी आप मीडियावाले जिन्हें मल्टीप्लेक्स फिल्में कहते हैं, उन फिल्मों ने ही मेरा रास्ता काफी आसान किया है।
आपने इस फिल्म में गाने के साथ-साथ खूब ठुमके भी लगाये हैं?
मैं ठीक-ठाक गा लेता हूं, पर डांस करना मेरे वश की बात नहीं है। रितिक और फरहान जैसे उत्कृष्ट डांसरों के साथ तो यह और भी कठिन है। डांस कैमरे के सामने करना होता है। गाना कैमरे के पीछे का काम है। शंकर ने मुझे गाने के लिए प्रोत्साहित किया।
मैं अपने रोल से संतुष्ट हूं: कैटरीना
क्या इसमें भी आपका शो-पीस टाइप का रोल है?
आप यदि रोल की लंबाई पर न जाएं, तो मैं इस फिल्म के अपने रोल से संतुष्ट हूं। मुझे लगता है कि राजनीति के बाद इस फिल्म में भी दर्शक मुझे बतौर एक्ट्रेस कबूल करेंगे।
इसमें आप हृतिक के साथ टमाटिनों ईवेंट का हिस्सा बनती हैं?
यह वाकई में इस फिल्म का अहम सीक्वेंस है। चारों तरफ टमाटरों की बौछार के बीच डांस करने में हम सभी को बहुत मजा आया। मैं इस डांस आइटम को कभी भूल नहीं सकती।
ज्यादातर आलोचक मानते हैं कि आपका करियर चंद सफल फिल्मों पर आश्रित है?
हिट फिल्में आपके स्टारडम के लिए जरूरी होती हैं। पर आपका करियर आपके परफरेमेंस पर ही बेस्ड होता है। मैं सिर्फ भाग्य के सहारे आगे नहीं बढ़ी। मैंने अपनी हर फिल्म के प्रति अपना समर्पण दिखाया है। मेरी किसी भी फिल्म की सफलता में मेरे कॉन्ट्रीब्यूशन को किसी ने खारिज नहीं किया। वरना किसी को कोई बड़ा बैनर, बड़े हीरो के साथ काम करने का मौका नहीं मिलता।
मगर ज्यादातर फिल्मों में एक्ट्रेस कैटरीना कम ही नजर आई हैं?
सच कहूं, तो मुझे ऐसे मौके ना के बराबर मिले। अरसे बाद प्रकाश जी की राजनीति में ऐसा मौका मिला, तो खुद को प्रूव किया है। और अब मुझे ऐसे ही मौके की तलाश है।
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